Translate

Saturday 4 June 2016

अध्याय 11 श्लोक 11 - 47 , BG 11 - 47 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 11 श्लोक 47

भगवान् ने कहा - हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी अन्तरंगा शक्ति के बल पर तुम्हें इस संसार में अपने इस परम विश्र्वरूप का दर्शन कराया है | इसके पूर्ण अन्य किसी ने इस असीम तथा तेजोमय आदि-रूप को कभी नहीं देखा था |



अध्याय 11 : विराट रूप

श्लोक 11.47


श्रीभगवानुवाच |

मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् |
तेजोमयं विश्र्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् || ४७ ||




श्रीभगवान् उवाच - श्रीभगवान् ने कहा; मया - मेरे द्वारा; प्रसन्नेन - प्रसन्न; तव - तुमको; अर्जुन - हे अर्जुन; इदम् - इस; रूपम् - रूप को; परम् - दिव्य; दर्शितम् - दिखाया गया; आत्म-योगात् - अपनी अन्तरंगा शक्ति से; तेजःमयम् - तेज से पूर्ण; विश्र्वम् - समग्र ब्रह्माण्ड को; अनन्तम् - असीम; आद्याम् - आदि; यत् - जो; मे - मेरा; त्वत् अन्येन - तुम्हारे अतिरिक्त अन्य के द्वारा; न दृष्ट पूर्वम् - किसी ने पहले नहीं देखा |




भावार्थ


भगवान् ने कहा - हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी अन्तरंगा शक्ति के बल पर तुम्हें इस संसार में अपने इस परम विश्र्वरूप का दर्शन कराया है | इसके पूर्ण अन्य किसी ने इस असीम तथा तेजोमय आदि-रूप को कभी नहीं देखा था |


तात्पर्य



अर्जुन भगवान् के विश्र्वरूप को देखना चाहता था, अतः भगवान् कृष्ण ने अपने भक्त अर्जुन पर अनुकम्पा करते हुए उसे अपने तेजोमय तथा ऐश्र्वर्यमय विश्र्वरूप का दर्शन कराया | यह रूप सूर्य की भाँति चमक रहा था और इसके मुख निरन्तर परिवर्तित हो रहे थे | कृष्ण ने यह रूप अर्जुन की इच्छा को शान्त करने के लिए ही दिखलाया | यह रूप कृष्ण कि उस अन्तरंगाशक्ति द्वारा प्रकट हुआ जो मानव कल्पना से परे है |अर्जुन से पूर्व भगवान् के इस विश्र्वरूप का किसी ने दर्शन नहीं किया था, किन्तु जब अर्जुन को यह रूप दिखाया गया तो स्वर्गलोक तथा अन्य लोकों के भक्त भी इसे देख सके | उन्होंने इस रूप को पहले नहीं देखा था, केवल अर्जुन के कारण वे इसे देख पा रहे थे | दूसरे शब्दों में, कृष्ण की कृपा से भगवान् के सारे शिष्य भक्त उस विश्र्वरूप का दर्शन कर सके, जिसे अर्जुन देख रहा था | किसी ने टिका की है कि जब कृष्ण सन्धिका प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास गए थे, तो उसे भी इसी रूप का दर्शन कराया गया था | दुर्भाग्यवश दुर्योधन ने शान्ति प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया, किन्तु कृष्ण ने उस समय अपने कुछ रूप दिखाए थे | किन्तु वे रूप अर्जुन को दिखाए गये इस रूप से सर्वथा भिन्न थे | यह स्पष्ट कहा गया है कि इस रूप को पहले किसी ने भी नहीं देखा था |








1  2  3  4  5  6  7  8  9  10

11  12  13  14  15  16  17  18  19   20

21  22  23  24  25  26  27  28  29  30

31  32  33  34  35  36  37  38  39  40

41  42  43  44  45  46  47  48  49  50

51  52  53  54  55






<< © सर्वाधिकार सुरक्षित भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट >>




Note : All material used here belongs only and only to BBT .
For Spreading The Message Of Bhagavad Gita As It Is 
By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online , 
if BBT have any objection it will be removed .

No comments:

Post a Comment

Hare Krishna !!