Translate

Friday 18 September 2015

अध्याय 7 श्लोक 7 - 30 , BG 7 - 30 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 30
जो मुझ परमेश्र्वर को मेरी पूर्ण चेतना में रहकर मुझे जगत् का, देवताओं का तथा समस्त यज्ञविधियों का नियामक जानते हैं, वे अपनी मृत्यु के समय भी मुझ भगवान् को जान और समझ सकते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 29 , BG 7 - 29 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 29
जो जरा तथा मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए यत्नशील रहते हैं, वे बुद्धिमान व्यक्ति मेरी भक्ति की शरण ग्रहण करते हैं | वे वास्तव में ब्रह्म हैं क्योंकि वे दिव्य कर्मों के विषय में पूरी तरह से जानते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 28 , BG 7 - 28 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 28

जिन मनुष्यों ने पूर्वजन्मों में तथा इस जन्म में पुण्यकर्म किये हैं और जिनके पापकर्मों का पूर्णतया उच्छेदन हो चुका होता है, वे मोह के द्वन्द्वों से मुक्त हो जाते हैं और वे संकल्पपूर्वक मेरी सेवा में तत्पर होते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 27 , BG 7 - 27 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 27
हे भरतवंशी! हे शत्रुविजेता! समस्त जीव जन्म लेकर इच्छा तथा घृणा से उत्पन्न द्वन्द्वों से मोहग्रस्त होकर मोह को प्राप्त होते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 26 , BG 7 - 26 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 26

हे अर्जुन! श्रीभगवान् होने के नाते मैं जो कुछ भूतकाल में घटित हो चुका है, जो वर्तमान में घटित हो रहा है और जो आगे होने वाला है, वह सब कुछ जानता हूँ | मैं समस्त जीवों को भी जानता हूँ, किन्तु मुझे कोई नहीं जानता |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 25 , BG 7 - 25 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 25

मैं मूर्खों तथा अल्पज्ञों के लिए कभी भी प्रकट नहीं हूँ | उनके लिए तो मैं अपनी अन्तरंगा शक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूँ, अतः वे यह नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 24 , BG 7 - 24 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 24

बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं कि मैं (भगवान् कृष्ण) पहले निराकार था और अब मैंने इस स्वरूप को धारण किया है | वे अपने अल्पज्ञान के कारण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच्च प्रकृति को नहीं जान पाते |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 23 , BG 7 - 23 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 23

अल्पबुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित तथा क्षणिक होते हैं | देवताओं की पूजा करने वाले देवलोक को जाते हैं, किन्तु मेरे भक्त अन्ततः मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 22 , BG 7 - 22 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 22

ऐसी श्रद्धा से समन्वित वह देवता विशेष की पूजा करने का यत्न करता है और अपनी इच्छा की पूर्ति करता है | किन्तु वास्तविकता तो यह है कि ये सारे लाभ केवल मेरे द्वारा प्रदत्त हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 21 , BG 7 - 21 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 21

मैं प्रत्येक जीव के हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित हूँ | जैसे ही कोई किसी देवता की पूजा करने की इच्छा करता है, मैं उसकी श्रद्धा को स्थिर करता हूँ, जिससे वह उसी विशेष देवता की भक्ति कर सके |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 20 , BG 7 - 20 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 20

जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा मारी गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभाव के अनुसार पूजा विशेष विधि-विधानों का पालन करते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 19 , BG 7 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 19

अनेक जन्म-जन्मान्तर के बाद जिसे सचमुच ज्ञान होता है, वह मुझको समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है | ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ होता है |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 18 , BG 7 - 18 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 18

निस्सन्देह ये सब उदारचेता व्यक्ति हैं, किन्तु जो मेरे ज्ञान को प्राप्त है, उसे मैं अपने ही समान मानता हूँ | वह मेरी दिव्यसेवा में तत्पर रहकर मुझ सर्वोच्च उद्देश्य को निश्चित रूप से प्राप्त करता है |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 17 , BG 7 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 17

इनमें से जो परमज्ञानी है और शुद्धभक्ति में लगा रहता है वह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि मैं उसे अत्यन्त प्रिय हूँ और वह मुझे प्रिय है |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 16 , BG 7 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 16

हे भरतश्रेष्ठ! चार प्रकार के पुण्यात्मा मेरी सेवा करते हैं – आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी तथा ज्ञानी |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 15 , BG 7 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 15

जो निपट मुर्ख है, जो मनुष्यों में अधम हैं, जिनका ज्ञान माया द्वारा हर लिया गया है तथा जो असुरों की नास्तिक प्रकृति को धारण करने वाले हैं, ऐसे दुष्ट मेरी शरण ग्रहण नहीं करते |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 14 , BG 7 - 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 14

प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है | किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 13 , BG 7 - 13 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 13

तीन गुणों (सतो, रजो तथा तमो) के द्वारा मोहग्रस्त यह सारा संसार मुझ गुणातीत तथा अविनाशी को नहीं जानता |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 12 , BG 7 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 12

तुम जान लो कि मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं, चाहे वे सतोगुण हों, रजोगुण हों या तमोगुण हों | एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ, किन्तु हूँ स्वतन्त्र | मैं प्रकृति के गुणों के अधीन नहीं हूँ, अपितु वे मेरे अधीन हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 11 , BG 7 - 11 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 11

मैं बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हूँ | हे भरतश्रेष्ठ (अर्जुन)! मैं वह काम हूँ, जो धर्म के विरुद्ध नहीं है |

Friday 11 September 2015

अध्याय 7 श्लोक 7 - 10 , BG 7 - 10 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 10

हे पृथापुत्र! यह जान लो कि मैं ही समस्त जीवों का आदि बीज हूँ, बुद्धिमानों की बुद्धि तथा समस्त तेजस्वी पुरुषों का तेज हूँ |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 9 , BG 7 - 9 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 9

मैं पृथ्वी की आद्य सुगंध और अग्नि की ऊष्मा हूँ | मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपस्वियों का तप हूँ |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 8 , BG 7 - 8 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 8

हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 7 , BG 7 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 7

हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 6 , BG 7 - 6 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 6

सारे प्राणियों का उद्गम इन दोनों शक्तियों में है | इस जगत् में जो कुछ भी भौतिक तथा आध्यात्मिक है, उसकी उत्पत्ति तथा प्रलय मुझे ही जानो |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 5 , BG 7 - 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 5

हे महाबाहु अर्जुन! इनके अतिरिक्त मेरी एक अन्य परा शक्ति है जो उन जीवों से यक्त है, जो इस भौतिक अपरा प्रकृति के साधनों का विदोहन कर रहे हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 4 , BG 7 - 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 4

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार – ये आठ प्रकार से विभक्त मेरी भिन्ना (अपर) प्रकृतियाँ हैं |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 3 , BG 7 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 3

कई हजार मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होता है और इस तरह सिद्धि प्राप्त करने वालों में से विरला ही कोई मुझे वास्तव में जान पाता है |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 2 , BG 7 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 2

अब मैं तुमसे पूर्णरूप से व्यावहारिक तथा दिव्यज्ञान कहूँगा | इसे जान लेने पर तुम्हें जानने के लिए और कुछ भी शेष नहीं रहेगा |

अध्याय 7 श्लोक 7 - 1 , BG 7 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 7 श्लोक 1

श्रीभगवान् ने कहा – हे पृथापुत्र! अब सुनो कि तुम किस तरह मेरी भावना से पूर्ण होकर और मन को मुझमें आसक्त करके योगाभ्यास करते हुए मुझे पूर्णतया संशयरहित जान सकते हो |