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Tuesday 22 December 2015

अध्याय 10 श्लोक 10 - 8 , BG 10 - 8 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 8
मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का कारण हूँ, प्रत्येक वस्तु मुझ ही से उद्भूत है | जो बुद्धिमान यह भलीभाँति जानते हैं, वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं |

अध्याय 10 श्लोक 10 - 7 , BG 10 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 7
जो मेरे इस ऐश्र्वर्य तथा योग से पूर्णतया आश्र्वस्त है, वह मेरी अनन्य भक्ति में तत्पर होता है | इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है |

अध्याय 10 श्लोक 10 - 6 , BG 10 - 6 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 6
सप्तर्षिगण तथा उनसे भी पूर्व चार अन्य महर्षि एवं सारे मनु (मानवजाति के पूर्वज) सब मेरे मन से उत्पन्न हैं और विभिन्न लोकों में निवास करने वाले सारे जीव उनसे अवतरित होते हैं |

अध्याय 10 श्लोक 10 - 4 , 5 , BG 10 - 4 , 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 4 - 5
बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमाभाव, सत्यता, इन्द्रियनिग्रह, मननिग्रह, सुख तथा दुख, जन्म, मृत्यु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश – जीवों के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं |

अध्याय 10 श्लोक 10 - 3 , BG 10 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 3
जो मुझे अजन्मा, अनादि, समस्त लोकों के स्वामी के रूप में जानता है, मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त होता है |

अध्याय 10 श्लोक 10 - 2 , BG 10 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 2
न तो देवतागण मेरी उत्पत्ति या ऐश्र्वर्य को जानते हैं और न महर्षिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का भी कारणस्वरूप (उद्गम) हूँ |

Sunday 20 December 2015

अध्याय 10 श्लोक 10 - 1 , BG 10 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 10 श्लोक 1
श्रीभगवान् ने कहा – हे महाबाहु अर्जुन! और आगे सुनो | चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो, अतः मैं तुम्हारे लाभ के लिए ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा, जो अभि तक मेरे द्वारा बताये गये ज्ञान से श्रेष्ठ होगा |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 34 , BG 9 - 34 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 34
अपने मन को मेरे नित्य चिन्तन में लगाओ, मेरे भक्त बनो, मुझे नमस्कार करो और मेरी ही पूजा करो | इस प्रकार मुझमें पूर्णतया तल्लीन होने पर तुम निश्चित रूप से मुझको प्राप्त होगे |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 33 , BG 9 - 33 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 33
फिर धर्मात्मा ब्राह्मणों, भक्तों तथा राजर्षियों के लिए तो कहना ही क्या है! अतः इस क्षणिक दुखमय संसार में आ जाने पर मेरी प्रेमाभक्ति में अपने आपको लगाओ |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 32 , BG 9 - 32 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 32
हे पार्थ! जो लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, वे भले ही निम्नजन्मा स्त्री, वैश्य (व्यापारी) तथा शुद्र (श्रमिक) क्यों न हों, वे परमधाम को प्राप्त करते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 31 , BG 9 - 31 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 31
वह तुरन्त धर्मात्मा बन जाता है और स्थायी शान्ति को प्राप्त होता है | हे कुन्तीपुत्र! निडर होकर घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 30 , BG 9 - 30 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 30
यदि कोई जघन्य से जघन्य कर्म करता है, किन्तु यदि वह भक्ति में रत रहता है तो उसे साधु मानना चाहिए, क्योंकि वह अपने संकल्प में अडिग रहता है |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 29 , BG 9 - 29 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 29
मैं न तो किसी से द्वेष करता हूँ, न ही किसी के साथ पक्षपात करता हूँ | मैं सबों के लिए समभाव हूँ | किन्तु जो भी भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है, वह मेरा मित्र है, मुझमें स्थित रहता है और मैं भी उसका मित्र हूँ |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 28 , BG 9 - 28 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 28
इस तरह तुम कर्म के बन्धन तथा इसके शुभाशुभ फलों से मुक्त हो सकोगे | इस संन्यासयोग में अपने चित्त को स्थिर करके तुम मुक्त होकर मेरे पास आ सकोगे |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 27 , BG 9 - 27 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 27
हे कुन्तीपुत्र! तुम जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ अर्पित करते हो या दान देते हो और जो भी तपस्या करते हो, उसे मुझे अर्पित करते हुए करो |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 26 , BG 9 - 26 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 26
यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 25 , BG 9 - 25 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 25
जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के बीच जन्म लेंगे, जो पितरों को पूजते हैं, वे पितरों के पास जाते हैं, जो भूत-प्रेतों की उपासना करते हैं, वे उन्हीं के बीच जन्म लेते हैं और जो मेरी पूजा करते हैं वे मेरे साथ निवास करते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 24 , BG 9 - 24 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 24
मैं ही समस्त यज्ञों का एकमात्र भोक्ता तथा स्वामी हूँ | अतः जो लोग मेरे वास्तविक दिव्य स्वभाव को नहीं पहचान पाते, वे नीचे गिर जाते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 23 , BG 9 - 23 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 23
हे कुन्तीपुत्र! जो लोग अन्य देवताओं के भक्त हैं और उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा कटे हैं, वास्तव में वे भी मेरी पूजा करते हैं, किन्तु वे यह त्रुटिपूर्ण ढंग से करते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 22 , BG 9 - 22 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 22
किन्तु जो लोग अनन्यभाव से मेरे दिव्यस्वरूप का ध्यान करते हुए निरन्तर मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा करता हूँ |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 21 , BG 9 - 21 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 21
इस प्रकार जब वे (उपासक) विस्तृत स्वर्गिक इन्द्रियसुख को भोग लेते हैं और उनके पुण्यकर्मों के फल क्षीण हो जाते हैं तो वे मृत्युलोक में पुनः लौट आते हैं | इस प्रकार जो तीनों वेदों के सिद्धान्तों में दृढ रहकर इन्द्रियसुख की गवेषणा करते हैं, उन्हें जन्म-मृत्यु का चक्र ही मिल पाता है |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 20 , BG 9 - 20 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 20
जो वेदों का अध्ययन करते तथा सोमरस का पान करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्ति की गवेषणा करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से मेरी पूजा करते हैं | वे पापकर्मों से शुद्ध होकर, इन्द्र के पवित्र स्वर्गिक धाम में जन्म लेते हैं, जहाँ वे देवताओं का सा आनन्द भोगते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 19 , BG 9 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 19
हे अर्जुन! मैं ही ताप प्रदान करता हूँ और वर्षा को रोकता तथा लाता हूँ | मैं अमरत्व हूँ और साक्षात् मृत्यु भी हूँ | आत्मा तथा पदार्थ (सत् तथा असत्) दोनों मुझ ही में हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 18 , BG 9 - 18 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 18
मैं ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अत्यन्तप्रिय मित्र हूँ | मैं सृष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज भी हूँ|

अध्याय 9 श्लोक 9 - 17 , BG 9 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 17
मैं इस ब्रह्माण्ड का पिता, माता, आश्रय तथा पितामह हूँ | मैं ज्ञेय (जानने योग्य), शुद्धिकर्ता तथा ओंकार हूँ | मैं ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद भी हूँ |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 16 , BG 9 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 16
किन्तु मैं ही कर्मकाण्ड, मैं ही यज्ञ, पितरों को दिया जाने वाला अर्पण, औषधि, दिव्य ध्वनि (मन्त्र), घी, अग्नि तथा आहुति हूँ |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 15, BG 9 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 15
अन्य लोग जो ज्ञान के अनुशीलन द्वारा यज्ञ में लगे रहते हैं, वे भगवान् की पूजा उनके अद्वय रूप में, विविध रूपों में तथा विश्र्व रूप में करते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 14 , BG 9 - 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 14
ये महात्मा मेरी महिमा का नित्य कीर्तन करते हुए दृढसंकल्प के साथप्रयास करते हुए, मुझे नमस्कार करते हुए, भक्तिभाव से निरन्तर मेरी पूजा करते हैं|

अध्याय 9 श्लोक 9 - 13 , BG 9 - 13 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 13
हे पार्थ! मोहमुक्त महात्माजन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं | वे पूर्णतः भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान् के रूप में जानते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 12 , BG 9 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 12
जो लोग इस प्रकार मोहग्रस्त होते हैं, वे आसुरी तथा नास्तिक विचारों के प्रति आकृष्ट रहते हैं | इस मोहग्रस्त अवस्था में उनकी मुक्ति-आशा, उनके सकाम कर्म तथा ज्ञान का अनुशीलन सभी निष्फल हो जाते हैं |

अध्याय 9 श्लोक 9 - 11 , BG 9 - 11 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 11
जब मैं मनुष्य रूप में अवतरित होता हूँ, तो मूर्ख मेरा उपहास करते हैं | वे मुझ परमेश्र्वर के दिव्य स्वभाव को नहीं जानते |

Friday 11 December 2015

अध्याय 9 श्लोक 9 - 10 , BG 9 - 10 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 9 श्लोक 10
हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चार तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है |