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Sunday 21 July 2013

अध्याय 3 श्लोक 3 - 16 , BG 3 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 3 श्लोक 16
वेदों में नियमित कर्मों का विधान है और ये साक्षात् श्रीभगवान् (परब्रह्म) से प्रकट हुए हैं | फलतः सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञकर्मों में सदा स्थित रहता है |



अध्याय 3 : कर्मयोग

श्लोक 3 . 16

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः |
आघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति || १६ ||


एवम् – इस प्रकार; प्रवर्तितम् – वेदों द्वारा स्थापित; चक्रम् – चक्र; – नहीं; अनुवर्तयति – ग्रहण करता; इह – इस जीवन में; यः – जो; अघ-आयुः – पापपूर्ण जीवन है जिसका; इन्द्रिय-आरामः – इन्द्रियासक्त; मोघम् – वृथा; पार्थ – हे पृथापुत्र (अर्जुन); सः – वह; जीवति – जीवित रहता है |




 
भावार्थ


वेदों में नियमित कर्मों का विधान है और ये साक्षात् श्रीभगवान् (परब्रह्म) से प्रकट हुए हैं | फलतः सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञकर्मों में सदा स्थित रहता है |
 
 तात्पर्य


इस श्लोक में यज्ञार्थ-कर्म अर्थात् कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कर्म की आवश्यकता को भलीभाँति विवेचित किया गया है | यदि हमें यज्ञ-पुरुष विष्णु के परितोष के लिए कर्म करने है तो हमें ब्रह्म या दिव्य वेदों से कर्म की दिशा प्राप्त करनी होगी | अतः सारे वेद कर्मादेशों की संहिताएँ हैं | वेदों के निर्देश के बिना किया गया कोई भी कर्म विकर्म या अवैध अथवा पापपूर्ण कर्म कहलाता है | अतः कर्मफल से बचने के लिए सदैव वेदों से निर्देश प्राप्त करना चाहिए | जिस प्रकार सामान्य जीवन में राज्य के निर्देश के अन्तर्गत कार्य करना होता है उसी प्रकार भगवान् के परम राज्य के निर्देशन में कार्य करना चाहिए | वेदों में ऐसे निर्देश भगवान् के श्र्वास से प्रत्यक्ष प्रकट होते हैं | 
कहा गया है – अस्य महतो भूतस्य निश्र्वसितम् एतद् यद्ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोSथर्वाङ्गिरसः “चारों वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद – भगवान् के श्र्वास से अद्भुत हैं |” (बृहराण्य क उपनिषद् ४.५.११) 
 ब्रह्मसंहिता से प्रमाणित होता है कि सर्व शक्तिमान होने के कारण भगवान् अपने श्र्वास के द्वारा बोल सकते हैं, अपनी प्रत्येक इन्द्रिय के द्वारा अन्य समस्त इन्द्रियों के कार्य सम्पन्न कर सकते हैं, दुसरे शब्दों में, भगवान् अपनी निःश्र्वास के द्वारा बोल सकते हैं और वे अपने नेत्रों से गर्भधान कर सकते हैं | वस्तुतः यह कहा जा सकता है कि उन्होंने प्रकृति पर दृष्टिपात किया और समस्त जीवों को गर्भस्थ किया | इस तरह प्रकृति के गर्भ में बद्धजिवों को प्रविष्ट करने के पश्चात् उन्होंने उन्हें वैदिक ज्ञान के रूप में आदेश दिया, जिससे वे भगवद्धाम वापस जा सकें | हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि प्रकृति में सारे बद्धजीव भौतिक भोग के लिए इच्छुक रहते हैं | किन्तु वैदिक आदेश इस प्रकार बानाये गए हैं कि मनुष्य अपनी विकृत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है एयर तथाकथित सुखभोग पुरा करके भगवान् के पास लौट सकता है | बद्धजीवों के लिए मुक्ति प्राप्त करने का सुनहरा अवसर होता है, अतः उन्हें चाहिए कि कृष्णभावनाभावित होकर यज्ञ-विधि का पालन करें | यहाँ तक कि वैदिक आदेशों का पालन नहीं करते वे भी कृष्णभावनामृत के सिद्धान्तों को ग्रहण कर सकते हैं जिससे वैदिक यज्ञों या कर्मों की पूर्ति हो जायेगी |









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Note : All material used here belongs only and only to BBT .
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By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online , 
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