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Wednesday 12 June 2013

अध्याय 3 श्लोक 3 - 5 , BG 3 - 5 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 3 श्लोक 5
रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना पड़ता है, अतः कोई भी क्षणभर के लिए भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता |

अध्याय 3 श्लोक 3 - 4 , BG 3 - 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 3 श्लोक 4
न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्मफल से छुटकारा पा सकता है और न केवल संन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है |

अध्याय 3 श्लोक 3 - 3 , BG 3 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 3 श्लोक 3
श्रीभगवान ने कहा – हे निष्पाप अर्जुन! मैं पहले ही बता चुका हूँ कि आत्म-साक्षात्कार का प्रयत्न करने वाले दो प्रकार के पुरुष होते हैं | कुछ इसे ज्ञानयोग द्वारा समझने का प्रयत्न करते हैं, तो कुछ भक्ति-मय सेवा के द्वारा |

अध्याय 3 श्लोक 3 - 2 , BG 3 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 3 श्लोक 2
आपके व्यामिश्रित (अनेकार्थक) उपदेशों से मेरी बुद्धि मोहित हो गई है | अतः कृपा करके निश्चयपूर्वक मुझे बतायें कि इनमें से मेरे लिए सर्वाधिक श्रेयस्कर क्या होगा?

अध्याय 3 श्लोक 3 - 1 , BG 3 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi

 अध्याय 3 श्लोक 1
अर्जुन ने कहा – हे जनार्दन, हे केशव! यदि आप बुद्धि को सकाम कर्म से श्रेष्ठ समझते हैं तो फिर आप मुझे इस घोर युद्ध में क्यों लगाना चाहते हैं?